9 اکتوبر، 2020

कली गुलाब शफ़क़ महताब यानी तू

 ग़ज़ल 

कली गुलाब शफ़क़ महताब यानी तू 

ग़ज़ल की एक महकती किताब यानी तू 

बहारो हुस्न का दिलकश ख़िताब यानी तू 

वफ़ा का एक दिलावेज़ बाब यानी तू 

तड़प फ़िराक़ तपिश प्यास इश्क़ यानी मैं 

नशा सुरूर सुराही शराब यानी तू 

वह हर्फ़ हर्फ़ महकती मिठास की बूँदें 

वह लफ्ज़ लफ्ज़ महकता गुलाब यानी तू 

ऐ काश आये अचानक कभी मेरे घर में 

वह आरज़ू मेरी वह मेरा खाव्ब यानी तू 

वह नर्म एटलसो किमख्वाब की शबीह कोई 

लताफ़तों का हसीन इंतखाब यानी तू 

तपिश थकावटो उलझन की तर्जुमानी मैं 

सुकून चैन मुहब्बत साहब यानी तू 

मैं कर रहा हूँ सवाल और जवाब की तफ़्सीर 

सवाल वस्ल है मेरा जवाब यानी तू 

कुछ और कैसे पढूं गा कि जब मिला है मुझे 

जमालो हुस्न का दिलकश निसाब यानी तू 

ग़ज़ाल सौसानो रेहां सनूबरो शमशाद 

हर इस्तेआरे का बस एक जवाब यानी तू 

उदास उदास नज़ीरी थे ज़िन्दगी थी उदास 

फिर आया एक हसीं इन्किलाब यानी तू 


मसीहुद्दीन नज़ीरी मऊ

کوئی تبصرے نہیں: